सच में तू बड़ा हो गया है...पहली किश्त

मैं ऑफिस जा रहा हूँ कुछ लाना है क्या? मैंने माँ से पूछा।माँ ने कहा " हाँ, नानी की दवाई और नाना-नानी के लिए टोस्ट और बिस्कुट, चाय के साथ लेने के लिए। गाँव भेजना है। मैंने हाँ में सर हिला दिया। माँ ने पूछा "पैसे दूँ?" मैंने कहा "हैं मेरे पास।" माँ मुस्कुरा दीं और बोली "बड़ा हो गया है तू" मैं कुछ नहीं बोला, मैं भी मुस्कुराया और बाइक उठाकर चल दिया। माँ के कहे हुए लफ्ज़ कान की दीवारों से टकराकर दिमाग के उसे कोने से जाकर टकरा गए, जहाँ कुछ यादें एक-दूसरे की गोद में सिमटी हुई थीं। उसी में से एक याद उठ खड़ी हुई और उसने आंखों की तरफ़ तेज़ी से दौड़ना शुरू किया, मैंने बाइक की रफ़्तार कम कर ली। अब तक वो याद मेरी आंखों में रफ़्तार पकड़ चुकी थी, और जहाँ से वो शुरू हुई वो दिन था 8 दिसम्बर 2006, सुबह-सुबह मेरे बिस्तर के बाजू में रखा मेरा मोबाईल बजा, पिताजी का कॉल था, कह रहे थे कि "भैया" का कॉल आया था, इस नम्बर से (उन्होंने मुझे नम्बर दिया।) भैया कह रहा था कि काम कुछ अच्छा सा नहीं लग पाया है, फिर भी कोशिश में हूँ कि अच्छा काम लग जाए। जबलपुर आने का फिलहाल कोई मन नहीं है। तुम इस नम्बर का पता करो, कहाँ का है? उसको लेकर आओ, तुम्हारे ताऊ जी कह रहे थे कि वो भी हाथ बटायेंगे सब ठीक करने में। पापा के पास भैया का ये पहला कॉल था उनके जबलपुर से जाने के बाद. मैं बिना देर किए बिस्तर से उठा, माँ को पूरी बात बताई। पापा का बताया हुआ नम्बर पता किया तो वो नागपुर का निकला, आज मैं सतना जाने वाला थे एक NGO के साथ ठेकेदारी का काम सँभालने, उसी के ज़रिये मैं अपने भाई की मदद करना चाहता था। आज जाने के लिए आठ बैग और सूटकेस के साथ पूरी तैयारी थी मेरी। माँ ने एक बैग में दो जोड़ी कपडों के साथ एक चादर रख दिया मेरे ओढ़ने के लिए। मैंने भैया के कुछ पोस्टकार्ड साइज़ फोटो रख लिए। मेन रोड पर खड़े होकर बस का इंतज़ार करने लगा, थोड़ी देर में नागपुर जाने वाली बस आ गई, मैं उस पर सवार हो गया। मैं निकल पड़ा था उस सफर में जहाँ मुझे अपने बड़े भाई तक पहुंचना था, मेरा सगा भाई जो मेरे लिए मेरा दोस्त, मेरा हमराज़, मेरा भाई सब कुछ... वो लगभग आठ महीने से लापता था, आखिरी बार मुझे मेरे दैनिक जागरण वाले ऑफिस में मिला था। उस दिन वो काफ़ी परेशान था, जब वो ऑफिस आया तो बोला, "अपनी घड़ी दे, मेरे जूते तू पहन ले और अपने जूते दे, साथ में ये मोबाईल रख बैट्री ख़त्म हो गई है इसकी। मुझे शहर का मैप बनाना है, प्रोजेक्ट के लिए। " मैंने उससे कहा, कि लूना ले जाए साथ में।" तो कहने लगा कि काम में मुश्किल होगी। मैंने कहा ठीक है, वो चला गया। रात को मैं घर पहुँचा, तब तक वो नहीं आया था। देर रात तक नहीं आया, सुबह भी नहीं आया, उसका कोई कॉल भी नहीं आया। रात से मैं और मेरी माँ परेशां थे, पिताजी उस वक्त शहर के बाहर पोस्टिंग पर थे हलाँकि उन्हें भी बता दिया था इस बारे में। दोपहर में पुलिस थाना जाकर भैया के गुम होने की रिपोर्ट दर्ज करायी। उसके बाद से आज तक बस उनके आने का इंतज़ार ही कर रहे थे। मेरे भाईसाहब की किस्मत बहुत अच्छी नहीं थी, क्योंकि उन्होंने जितने भी काम किए उनमे खूब मेहनत की पर फायेदे के अलावा सब कुछ हुआ। मशरूम प्रोडक्शन, अगरबत्ती प्रोडक्शन, साइबर कैफे किसी में भी फायदा नहीं हो पाया। उल्टा क़र्ज़ में डूबते गए और क़र्ज़ लौटाया भी दस टके के ब्याज पर, अब तक वो दूसरो का पैसा दुगना कर चुके थे। फिर भी सूदखोर उनका पीछा नहीं छोड़ रहे थे, बात अब घर तक आने लगी थी। भैया काफ़ी हताश हो चुके थे। शायद इसलिए घर छोड़ दिया, हम लोगों को परेशानी न हो इसलिए आज तक घर से कोई कांटेक्ट भी नहीं किया। दोपहर से चला शाम को नागपुर पहुँचा, वहां पहुंचकर उसी नंबर पर फ़ोन किया, उसने बताया कि ये गणेश पेठ एरिया का नम्बर है। मैं भैया की फोटो लेकर उस जगह पहुँचा और लोगों को दिखाकर पूछने लगा उनके बारे में। एक दुकान में, एक बन्दा शेविंग करवा रहा था, फोटो देखकर बोला कि "ये भैया तो रोज़ मेरी दूकान के सामने सुबह नौ बजे निकलते है, बहुत अच्छे कपड़े पहनते हैं। हाथ में एक बड़ी घड़ी भी पहनते हैं। लाल रंग के बाल हैं। पर कभी किसी से बात करते हुए नहीं देखा। आप कल आ जाओ मेरी दुकान पर, वहां मिल लेना इनसे।" मैं कल होने का इंतज़ार करते हुए वहां पास के एक लोंज में जाकर रुक गया। बस यही सोच रहा था कि सवेरा कितनी जल्दी हो जाए।

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