बारिश और तुम
बारिश दबे पाँव आती है,
और अपनी मौजूदगी के निशां,
खिड़की पर छोड़ जाती है,
जो कुछ देर बाद,
खुद-बा-खुद गायब भी हो जाते हैं,
पर तुम तो मेरी ज़िन्दगी में,
अब भी नुक्ते की तरह समाई हो.
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