श्रुति

रोशनदान से,
छनकर आता हुआ,
धूप का एक कतरा,
फर्श पर पड़े-पड़े,
तुम्हारे नाम के शुरूआती लफ़्ज़ की,
शक्ल लेता गया,
कि जैसे!
वो भी तुम्हें,
कमरे में रखे रेडियो पर,
"सुनकर,"
अपनी खुशी इज़हार करते हो,
बाखुदा!
"दिल चाहता है,"
कि इस तरह,
तुम हर दिल के रोशनदान से,
छनकर,
दिन के एक पहर में,
उन्हें रोशन कर जाया करो...


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