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न कोई नज़्म है
न कोई इश्तिहार ही
ये दीवार भी
मेरे दिल की तरह
खाली ही है
नज़दीक आकर देखो तो
शायद कुछ महीन दरारें
दिख भी जाएँ
दिल में भी
और दीवार में भी...

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