सच में तू बड़ा हो गया है...दूसरी किश्त

सच में तू बड़ा हो गया है...पहली किश्त से आगे...रात में नींद आँखों के आस-पास मंडराते हुए कब आँखों से लग गयी, पता ही नहीं चल पाया. खैर, सुबह हो चुकी थी और मैं जिस लॉज में रात को रुका था सुबह होते ही उसमें रहने वाले बाकी लोग दिखाई दिए. इस लॉज में रहने वाले ज्यादातर लोग कहीं न कहीं जॉब करते हैं, जैसे कोई पुलिस में है, कोई फाइनेंस में. ये लोग यहाँ पर स्थायी तौर पर रहते हैं. आज भी जब पांच साल बाद जब वो सब कुछ लिख रहा हूँ जो घट चुका है तो भी वो दृश्य एकदम ताज़ा हैं जैसे इस रात का तीसरा पहर. खैर, सुबह हो चुकी थी लेकिन मेरी नींद तब खुली जब मेरे मोबाइल पर किसी का कॉल आया. मैं तैयार होकर उस जगह के लिये निकल पड़ा, जहाँ कल अपनी खोज बंद कर दी थी. मुझे जिस व्यक्ति ने अपनी दुकान पर आने के लिये कहा था, उसके मुताबिक मुझे १२ बजे तक मुझे उसकी दुकान पहुंचना था. चूँकि मैं लॉज से बहुत जल्दी निकल गया था इसलिए चाय पीकर और नाश्ता करके मैं अपनी खोज में लग गया. एक दुकान में पहुंचकर जब मैं अपने भाई का फोटो दिखा रहा था, तब एक बच्चे ने कहा कि कल रात में गार्डन के पास एक डेड बॉडी मिली है. उसकी इस बात से मेरी खोज में कोई अंतर नहीं आया. ११ बजे में उस प्रेस वाले की दुकान पहुंचा जहाँ से मेरे भाईसाहब रोज निकला करते थे. मैं कुर्सी लगाकर उस सड़क पर टकटकी लगाकर बैठ गया. रोज १२ से १२:३० के बीच वहाँ से निकलने वाले मेरे भाईसाहब उस दिन वहाँ से नहीं निकले.  मैंने १ बजे तक वहाँ इंतज़ार किया और फिर गणेशपेठ पोलिस स्टेशन पहुँच गया. वहाँ मेरे भाईसाहब की तस्वीर दिखाई. मैंने उनसे गार्डन वाली घटना का ज़िक्र किया और डेड बॉडी को देखने की बात ज़ाहिर की. उसके लिये मुझे नागपुर के शासकीय मेडिकल हॉस्पिटल जाने को कहा गया. ऑटो से मैं वहाँ पहुंचा और १९ साल से जिस भाई को अपने आस-पास हँसते-रोते, खेलते-कूदते देखा था उस वक्त वो मेरा बड़ा भाई, मेरी आँखों के सामने लगभग पांच फिट दूर एक स्ट्रेचर पर अचेत लेटा हुआ था. उसके मृत शरीर पर कपड़े का एक भी टुकड़ा नहीं था और न ही उस पर कफ़न डाला गया था. मेरी आँखों तक उस वक्त सिर्फ दो ही आंसू पहुँच पाए थे, जिन्हें मैंने ठीक से बाहर भी नहीं आने दिया. मैंने वहाँ मौजूद कर्मचारी और पोलिसकर्मी से कहा कि ये मेरे भाई हैं, उन लोगों ने दुबारा शिनाख्त करने के लिये कहा. मैंने तब भी कहा कि मैं किसी भी तरफ़ से भी देखूँ , ये मेरे भाई ही रहेंगे...मैं इन्हें यहाँ से ले जाना चाहता हूँ, जो भी कार्यवाही है उसे शुरू करें. कुछ कागज़ी कार्यवाही शुरू हुई और मैंने पूछा कि पोस्टमोर्टम हुआ या नहीं? जवाब न में मिला, तब मैंने पोस्टमोर्टम करवाने की इच्छा जतायी और मेरे भाई का पोस्टमोर्टम मेरे सामने ही हुआ. पुलिसकर्मियों ने इस दुर्घटना की सूचना परिवारवालों को देने को कही. उन्हें जब ये पता चला कि मेरे पिताजी भी पोलिस में हैं तो उन्होंने इस सूचना को प्रेषित करने के लिये जोर दिया. मैं बहुत असहाय महसूस कर रहा था, कि किस तरह पिताजी को इस दुर्घटना की सूचना दूँ? कैसे माँ से कहूँ कि भैया अब इस दुनिया में नहीं हैं. पिताजी उस वक्त मंडला में पदस्थ थे और माँ जबलपुर में थीं. मैंने साहस बटोरकर पिताजी को इस बात की जानकारी दी, उस वक्त पिताजी रोये नहीं बल्कि उन्हें मेरी चिंता होने लगी. वो जानते थे कि बड़े भैया मेरे लिये भाई से कहीं बढ़कर थे. पिताजी ने नागपुर आने की बात की लेकिन मैंने उन्हें आश्वाशन दिया कि मैं भाईसाहब को लेकर आऊँगा. पापा ने मुझे गाँव आने के लिये कहा. नागपुर के पुलिसकर्मियों ने मेरा पूरा सहयोग दिया और सारी कार्यवाही जल्दी करके मुझे स्वतन्त्र कर दिया. मैंने एक गाड़ी का इंतजाम कर लिया था और उस गाड़ी में मैं मेरे भाई को लेकर शाम के छः बजे के आस-पास नागपुर से निकल पड़ा था अपने गाँव के लिये और निकलते हुए लॉज से अपना सामान भी उठा लिया था. रास्ते में ड्राइवर और उसका हेल्पर भोजन करने के लिये रुके. उन्होंने मुझसे भोजन करने को कहा, उन्हें ये बात बता दी गयी थी कि मैंने नाश्ते के बाद कुछ खाया नहीं है. ड्राइवर ने कहा कि आप अभी घर पहुंचेंगे तो ऐसी हालत में वहाँ कुछ भी नहीं खा पाएंगे. ऐसी स्थिति में अपनी सेहत का ध्यान रखना बेहद ज़रुरी है. मैंने थोड़ा दाल-चावल वहाँ खाया और फिर वहाँ से निकल गए. थोड़ी देर में हम गाँव पहुंचे. रात के लगभग १०:३० बज रहे थे और गाँव में हर तरफ सन्नाटा छाया हुआ था. गाँव में खामोशी का होना कोई नई बात नहीं थी लेकिन उस रात वो खामोशी बहुत कष्टदायक थी. मैं अपने दादाजी के घर पहुंचा, गाँव के बहुत सारे लोग वहाँ एकत्रित थे. सभी को मेरा और मेरे भाई का इंतज़ार था.  मेरे भाई का शव गाड़ी से उतारा गया और घर के बीच वाले कमरे में रखा गया. मैंने गाड़ी से उतरकर अपने पिताजी की ओर देखा, ये शायद दूसरी बार था जब मैंने उन्हें रोते हुए देखा था. एक बार मेरे दादाजी के गुजर जाने पर और दूसरा आज. मेरे पिताजी ने मुझे सीने लगते हुए कहा कि आज तुमने बहुत बड़ा काम किया है. मेरी माँ भी वहीँ थी और बेहद दुखी थीं, उन्होंने कहा कि तूने अपने कहे हुए काम को पूरा किया है. अपने भाई को लेकर आया है. मैं किसी से कुछ नहीं कह पाया और दूसरे कमरे में चला गया. वहाँ मेरे बाकी रिश्तेदार थे, जो रिश्ते में मेरे भाई-बहिन लगते थे. सबका रो-रो कर बुरा हाल था, बस मेरी ही आँखें सूखी हुई थीं. मुझे रोने के लिये कहा गया लेकिन मैं नहीं रो पाया. क्योंकि उस समय मेरे मम्मी-पापा उसी कमरे में थे. मैंने अपने मामाजी को उन्हें वहाँ से ले जाने के लिये कहा, उनके जाने के बाद मैंने अपने भाई का चेहरा अपने हाथों में लेकर उसके दुलार को महसूस किया जो उसने सालों-साल तक मुझ पर लुटाया था. उस समय मेरी आँखों से आँसू तेजी से निकल पड़े और काफी देर तक नहीं थमे. अपने आँसू पोछकर मैं उस कमरे में गया जहाँ मेरे मम्मी-पापा मौजूद थे, वो उस वक्त रो रहे थे और मुझे देखते ही चुप हो गए. मैं बिना कुछ कहे वहाँ से फिर अपने भाई-बहिनों के कमरे में चला गया. जैसे-तैसे वो रात कट गयी और सुबह भैया के अंतिम यात्रा की तैयारी होने लगी. मेरी बहिने भैया के लिये फूलों की माला तैयार कर रही थीं, मामाजी बाँस के ऊपर आसन बिछा रहे थे, जिस पर भैया को लिटाया जाना था. भैया के शरीर को आसन पर लेटाकर उन पर इत्र छिड़का गया और उन्हें फूलों से ढँक दिया गया. मेरे पिताजी उस अंतिम यात्रा में आना चाहते थे लेकिन रीति-रिवाजों के चलते उन्हें नहीं आने दिया गया. मेरी मम्मी ने एक बार जोर देकर कहा कि अगर वे जाना चाहते हैं तो उन्हें जाने दिया जाए लेकिन सभी ने मना कर दिया. मेरी माताजी के कहने पर ही एक फोटोग्राफर का इंतजाम किया गया था जो उस अंतिम यात्रा के दृश्य अपने कैमरे में कैद कर रहा था. उस अंतिम यात्रा में पूरा गाँव शामिल हुआ और भैया को लेकर हम अपने गाँव के दाह-संस्कार स्थल पहुँचे. वहाँ पहुंचकर मैंने नदी में स्नान किया और पानी से भरा छोटा मटका लेकर चिता के फेरे लगाये. उसके बाद मैंने ही मुखाग्नि दी, मुखाग्नि देने के बाद मैं फूट-फूटकर रो पड़ा और थोड़ी देर में चुप भी हो गया. मृत शरीर के आत्मा की शांति की प्रार्थना करने के बाद हम सभी घर को लौट गए...